टेबल टेनिस या पिंग पोंग?
टेबल टेनिस (table tennis) को पिंग पोंग (ping pong) भी कहा जाता है। टेबल टेनिस को कमरों के भीतर खेलने के लिए बनाया गया था। टेबल टेनिस को लॉन टेनिस के सिद्धांत के समान गेंद का खेल और मध्य में इसकी चौड़ाई पर तय किए गए एक नेट टेबल को दो बराबर अदालतों में विभाजित एक समतल टेबल पर खेला जाता है। खिलाड़ी का लक्ष्य गेंद को हिट करना है ताकि वह नेट पर जाए और प्रतिद्वंद्वी के टेबल के आधे हिस्से पर इस तरह से उछले कि प्रतिद्वंद्वी उस तक न पहुंच सके या उसे सही तरीके से वापस न कर सके। हल्की खोखली गेंद को खिलाड़ियों द्वारा रखे गए छोटे रैकेट (चमगादड़, या पैडल) द्वारा जाल के पार आगे-पीछे किया जाता है।
टेबल टेनिस खेल दुनिया भर में अधिकांश देशों में यह बहुत प्रतिस्पर्धात्मक खेल के रूप में आयोजित किया जाता है, खासकर यूरोप और एशिया में, खासकर चीन और जापान में। टेबल टेनिस लाखों लोग खेलते है, अब यह खेल अत्यंत लोकप्रिय हो चुका है और संसार के 71 देशों में खेला जाता है। टेबल टेनिस आज बहुत लोकप्रिय खेल है।
टेबल टेनिस का इतिहास:
सर्वप्रथम यह खेल 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इंगलैण्ड में खेला जाता था तब इसे 'गॉसिमा' और व्हिफ-व्हैफ के नामों से भी जाना जाता था। इसकी गेंद के मेज और बल्ले से टकराने से जो ध्वनि निकलती है उसके आधार पर इसका नाम 'पिंग पोंग ' भी पड़ा, जो एक व्यापार नाम था। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ तक यह खेल कई देशों में लोकप्रिय हो गया था। सन 1905 से 1910 के बीच यह मध्य यूरोप में भी काफी लोकप्रिय हो गया। कहा जाता है कि इससे पूर्व यह जापान में खेला जाने लगा था तथा वहीं से चीन तथा कोरिया में भी पहुँचा बाद में 'पिंग-पोंग' एक रजिस्टर्ड ट्रेड मार्क बन गया था इसलिए इस खेल का नाम टेबल-टेनिस पड़ा।
जर्मन के डॉ. लेहमान के प्रयासों के फलस्वरूप 15 जनवरी, 1926 को अन्तराष्ट्रीय टेबल-टेनिस फेडरेशन का गठन हुआ। इसके पहले अध्यक्ष आइवर मॉन्टागू (इंगलैण्ड) थे। सन 1926 के अन्त में ही लंदन में टेबल-टेनिस की पहली यूरोपीय चैम्पियनशिप आयोजित की गई और इस प्रतियोगिता के दौरान ही एक बैठक में तय किया गया कि जो प्रतियोगिता खेली जा रही थी उसे 'प्रथम विश्व-चैम्पियन' नाम दिया जाए। इसी बैठक में नए नियम भी तय किए गए। दूसरी विश्व चैम्पियनशिप' स्टाकहोम (स्वीडन) में जनवरी 1928 में कराई गई।
1939 तक इस खेल में मध्य यूरोप के खिलाड़ियों का वर्चस्व था, पुरुषों की टीम स्पर्धा नौ बार हंगरी से और दो बार चेकोस्लोवाकिया से जीती थी।
1950 के दशक के मध्य में एशिया चैंपियंस के प्रजनन मैदान के रूप में उभरा, और उस समय से पुरुषों की टीम घटना को जापान या चीन द्वारा जीता गया है, जैसा कि कुछ हद तक महिलाओं की घटना है; उत्तर कोरिया भी एक अंतरराष्ट्रीय ताकत बन गया। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक सीमित ने 1977 में टेबल-टेनिस को ओलम्पिक खेल के रूप में मान्यता दी गई।
1980 में पहला विश्व कप आयोजित किया गया था, और चीन के गुओ यूहुआ ने $ 12,500 का प्रथम पुरस्कार जीता था। टेबल टेनिस 1988 में पुरुषों और महिलाओं के लिए एकल और युगल प्रतियोगिता के साथ ओलम्पिक में शामिल करने का निर्णय लिया गया।
'भारतीय टेबल टेनिस फेडरेशन' की स्थापना 1938 ई. में हुई। भारत 1926-27 में गठित अंतर्राष्ट्रीय टेबल टेनिस फेडरेशन' का एक संस्थापक सदस्य भी है। भारत ने अपनी पहली आधिकारिक टीम 1939 में हुई 'विश्व प्रतियोगिता' में भेजी थी। भारतीय खिलाड़ियों ने 1926-39 तक हुई बारह अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओ में से आठ में भाग लिया था। टी.टी.एफ.आई ने पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1958 में कलकत्ता में आयोजित की थी जिसने एम. अय्यूब पुरुषों का राष्ट्रीय एकल ख़िताब (पीथम पुरम कप) जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने।
1939 'त्रावणकोर कप' का पहला महिला खिताब पी. लीमा ने जीता था. 'भारतीय टेबल टेनिस फेडरेशन' राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के अलावा क्षेत्रीय प्रतियोगिताएँ भी आयोजित करवाता रहता है।
भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ियों में सबसे अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार कमलेश मेहत्ता (पुरुष) और इंद्रपुरी (महिला) ने जीते है। दोनों ने आठ-आठ बार राष्ट्रीय ख़िताब को जीता है। सबसे अधिक टीम पदकों (पुरुष) का रिकॉर्ड महाराष्ट्र के नाम है। महाराष्ट्र ऐसी अकेली टीम है जिसने राष्ट्रीय ख़िताब 1986-89 में चार लगातार वर्षो तक जीता है। महिलाओं के वर्ग में महाराष्ट्र ने 'कोर्बिलियन रूप' के लिए राष्ट्रीय टीम पदक 14 बार जीता है। यह प्रतियोगिता पहली बार 1946 में चेन्नई में आयोजित की गई थी।
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