मिल्खा सिंह की जीवनी और रिकॉर्ड्स...
मिल्खा सिंह, एक पूर्व भारतीय ट्रैक और फील्ड धावक है। जिन्होंने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उन्हें "उड़न सिख" उपनाम दिया गया था (जन्म 20 नवम्बर 1929 को, गोविन्दपुर [अब फैसलाबाद], पाकिस्तान), भारतीय ट्रैक और फील्ड एथलीट, जो चौथे स्थान पर ओलंपिक एथलेटिक्स स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय पुरुष बने।
भारत के विभाजन के दौरान हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा 1947 में पाकिस्तान से भारत आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे।
उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने से पहले सड़क के किनारे एक रेस्तरां में काम करके जीवन यापन किया। मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गये। एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ (रेस) के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे। वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आये।
यह सेना में सिंह को एक धावक के रूप में अपनी क्षमताओं का एहसास हुआ। 200 मीटर और 400 मीटर स्प्रिंट में राष्ट्रीय ट्रायल जीतने के बाद, मेलबर्न में 1956 के ओलंपिक खेलों में उन घटनाओं के लिए प्रारंभिक हीट के दौरान उनका सफाया कर दिया गया था।
1958 के एशियाई खेलों में, सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दोनों दौड़ जीती। उस वर्ष बाद में उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर स्वर्ण पर कब्जा किया, जो खेलों के इतिहास में भारत का पहला एथलेटिक्स स्वर्ण था। वह रोम में हुए वर्ष 1960 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में चौथे स्थान प्राप्त किया। सिंह ने 1962 के एशियाई खेलों में अपना 400 मीटर का स्वर्ण बरकरार रखा और भारत की 4 × 400 मीटर रिले टीम के हिस्से के रूप में एक और स्वर्ण भी जीता। और वर्ष 1962 के एशियाई खेलों (200 मीटर श्रेणी में) में भी कुछ रिकॉर्ड अपने नाम किये थे।
यह, वर्ष 1962 में पाकिस्तान में हुई वह रेस थी जिसमें मिल्खा सिंह ने टोक्यो एशियाई खेलों की 100 मीटर रेस में स्वर्ण पदक विजेता अब्दुल खलीक को हरा दिया था और उनको पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने ‘द फ्लाइंग सिख’ नाम दिया।
उन्होंने 1964 के टोक्यो खेलों में राष्ट्रीय 4 × 400 टीम के हिस्से के रूप में अंतिम ओलंपिक उपस्थिति दर्ज की, उन्होंने वर्ष 1964 में, ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल में भी देश का प्रतिनिधित्व किया था।
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह को मिली सफलताओं के सम्मान में, उन्हें भारतीय सिपाही के पद से कनिष्ठ कमीशन अधिकारी पर पदोन्नत कर दिया गया। सेवानिवृत्ति के बाद मिलखा सिंह खेल निर्देशक, पंजाब के पद पर थे। वर्ष 1998 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए। मिलखा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। वे चंडीगढ़ में रहते थे। जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनपर भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म बनायी। ये फिल्म बहुत चर्चित रही। 'उड़न सिख' के उपनाम से चर्चित मिलखा सिंह देश में होने वाले विविध तरह के खेल आयोजनों में शिरकत करते रहते थे। हैदराबाद में 30 नवंबर,2014 को हुए 10 किलोमीटर के जियो मैराथन-2014 को उन्होंने झंड़ा दिखाकर रवाना किया।
व्यक्तिगत जीवन:
मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर से हुआ था। वह भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान थीं। जीव मिल्खा सिंह उनके एकलौते पुत्र हैं, जो शीर्ष रैंकिंग के अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर गोल्फर हैं।
मृत्यु:
मिलखा सिंह ने 18 जून, 2021 को चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे COVID-19 संबंधित जटिलताओं के कारण मृत्यु हो गई। चार-पाँच दिन पूर्व उनकी पत्नी का देहान्त भी कोविड से ही हुआ था। उनके पुत्र जीव मिलखा सिंह गोल्फ़ के खिलाड़ी हैं।
उपलब्धियाँ :
वर्ष 1958 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
वर्ष 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों की 440 गज रेस में – प्रथम
400 मीटर में वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 400 मीटर रेस में – प्रथम
वर्ष 1962 के एशियाई खेलों की 4*400 रिले रेस में – प्रथम
वर्ष 1964 के कलकत्ता राष्ट्रीय खेलों की 400 मीटर रेस में – द्वितीय
पुरस्कार :
मिल्खा सिंह 1959 में 'पद्मश्री' से अलंकृत किये गये।
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