प्राणायाम कितने प्रकार के होते हैं, जानिए इसके तौर-तरीके और लाभ...
प्राणायाम अभ्यास पुरे शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को नियमित करते है। सांस लेने के अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे श्वास के दौरान फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाऐंगे और शरीर में वायु प्रवाह को सुचारु रूप से संचरित रखेंगे। प्राणायाम दो शब्दों से मिल कर बना है। प्राण और आयम। प्राण का मतलब महत्वपूर्ण ऊर्जा या जीवन शक्ति है। वह शक्ति जो सभी चीजों में मौजूद है, चाहे वो जीवित हो या निर्जीव। प्राणायाम श्वास के माध्यम से यह ऊर्जा शरीर की सभी नाड़ियों में पहुँचाती है। यम शब्द का अर्थ है नियंत्रण और में इसे विभिन्न नियमों या आचार को निरूपित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। मगर प्राणायाम शब्द में प्राण के साथ यम नहीं आयम की संधि की गयी है। आयम का मतलब है एक्सटेंशन या विस्तार करना।
प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।
पूरक: नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
कुम्भक: अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
रेचक: अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
प्राणायाम के प्रकार:
प्राणायाम के लाभ:
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प्राणायाम के कुछ प्रकर: 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई,4.भ्रामरी, 5.कपालभाती 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.शितायु (shitau) आदि है।
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